कुछ कुछ दिखाई भी कम देता है,
ऐसा नहीं है कि मै प्रोढ़ हूँ,
या मैं अबोध हूँ,
बस कुछ सुनना नहीं चाहता,
कुछ देखना भी नहीं चाहता,
मैं आज का मानव हूँ,
मानव हूँ अपितु रावण हूँ,
कई मायनो में,
मैं हमेशा अत्याचारी ही नहीं,
अपितु देखने वाला हूँ,
चुपकर चलने वाला हूँ,

कभी ऊँगली दिखाने वाला हूँ,
कभी हंस कर उपहास करने वाला हूँ ,
मैं आज का मानव हूँ,
मैं सभ्यता का उद्गार हूँ,
मै तरक्की की पहचान हूँ,
मैं मानव रूपी दानव हूँ,
खुद में लिपटा,
खुद तक सिमटा,
वाक्चातुर्य से भरा,
एक खलनायक हूँ मैं,
कोरी बातों वाला अभिनेता,
न कुछ करने वाला प्रेक्षित हूँ मैं,
इसलिए आजकल आँख कान बंद किये चलता हूँ मैं,
और महसूस करता हूँ कि
आजकल सुनाई........