Thursday, 11 September 2025

CHOR!!

 ये जो दुनिया असत होती देखने आती है,

और बड़ी खुश हो जाती है,

उसे क्या पता? इसमें धरती और आसमान का मिलन नहीं,

बिछड़ना लिखा है।


धरती, जो फक्र से देखती है,

अपना आसमान, खूब इंतज़ार करती है,

पर,पर?

 मिल नहीं पाती,

वो दिखते हैं मिलते से, छोर पर,

थामे हाथ, लगाए पीठ एक दूसरे से,

कुछ ज्यादा ही डूब जाते हैं एक दूसरे में,

कि भूल जाते हैं, कि बीच में दूरियाँ कितनी हैं।


वो खूबसूरत मिलन, वो थामे हाथ,

वो उनका साथ, ना मिल कर भी, संग रहता है,

सदा, वो रोज मिलते हैं,

उस उगते भोर में, उस डूबते शोर में,

कल फिर मिलने को, और धरती इंतज़ार करती है,

सदा और हमेशा, मिलने को सूरज से,

वो चोरी-छिपे जहाँ भोर होता है!!


धरती की ये चाहत, आसमान का ये प्यार,

बिछड़ के भी जुड़े रहते हैं, अनकहे संवाद में।

हर सुबह नई उम्मीद, हर शाम नया इंतज़ार,

मिलन की अधूरी कहानी, पर अटूट विश्वास का सार।


उनकी ये मुलाकातें, छुपी रहती हैं आँखों से,

पर महसूस होती हैं, दिल की गहराईयों में।

धरती और आसमान, बिछड़े हुए संग हैं,

एक अनदेखे बंधन में, बंधे हुए अनंत काल तक।


उनका ये प्यार, ये मिलन, ये बिछड़ना,

और धरती बस इंतज़ार में रहती है,

उस पल की, जब फिर से मिलेगी सूरज की किरणों से।


https://youtube.com/shorts/QN4AAVZRF4Q?si=Q56_HBftRO7EtRE0

No comments:

Post a Comment