तुम राम बने मैं सीता बन गई,
तुम कृष्ण बने मैं राधा बन गई,
तुम सखा बने मैं द्रौपदी बन गई,
तुम पति बने मैं रुक्मिणी बन गई,
तुम प्रभु बने मैं मीरा हो गई,
तुम पुत्र बने मैं माँ बन गई,
तुम महिषासुर बने मैं काली बन गई,
तुम शिव बने मैं शक्ति हो गई,
तुम शिव समान बने मैं गंगा हो गई,
तुम विष्णु हुए मैं लक्ष्मी बन गई,
तुम इंद्र बने मैं मेनका बन गई,
तुम आसमान बने मैं धरती हो गई,
तुम आधुनिक हुए मैं भी अर्धनग्न हो गई,
तुम शातिर हुए मैं भी तेज हो गई,
तुम निर्मल हुए मैं भी सरल हो गई,
तुम प्रतिद्वंद्वी बने मैं प्रतिस्पर्धी बन गई,
तुम स्वामी बने मैं दासी बन गई,
तुम ज्ञानी बने मैं गार्गी हो गई,
तुम व्यापारी बने मैं देह बन गई,
तुमने बेवकूफ बनाया मैं बन गई,
जबकि मैं जानती थी कि तुम क्या चाहते थे,
तुम निर्मम बने मैं निर्भाव हो गई,
तुम बेपरवाह बने मैं शशक्त हो गई,
तुमने मुझे छोड़ा मैंने प्रजनन छोड़ दिया,
मैं दोस्त हूँ, प्रेम हूँ, अर्धांगिनी हूँ, दासी हूँ, पराई हूँ, कलुषित हूँ, चरित्रहीन हूँ, अभिमानी हूँ,
हम रूप हैं सृष्टि के दो,
तुम मुझमें नुक्स ढूंढते रहे, मैं वो बनती चली गई,
हम दोनों सृजन भी हैं और विनाश भी,
पर जो तुम बने मैं भी उसी में ढल गई!
मैं हमेशा सृजन ही चुनना चाहूंगी,
ज़रा सोचकर देखना,
अब तुम क्या बनना चाहोगे?

No comments:
Post a Comment