उसने पूछा प्रेम क्या है?
प्रेम?
प्रेम की क्या परिभाषा है?
ये तो खुद ही एक भाषा है,
वो तुम्हारा हाथ,
तुम्हारा साथ,
वो पहला एहसास,
कि मैं प्रेम हूँ,
ये रोके नहीं रुकता,
ये कहीं भी नहीं झुकता,
ये तुम्हारे मनाने में है,
तो कभी तुम्हारे रूठ जाने में है,
तुम्हारे मुस्कुराने में है,
तो कभी तुम्हारे इतराने में है,
तुम्हारी जिद्द में है,
तुम्हारी हर एक समझदारी में है,
तुम्हें देख मेरे अभिमान महसूस करने में है,
ये जो हर जगह तुम खयालों में रहते हो,
ये मूरत है पवित्रता की,
हमारी दोस्ती की,
मासूमियत की,
नादानियों की,
इसमें कुछ बयां नहीं करना पड़ता,
जाने कैसे सब समझ आ जाता है,
प्रेम? ये अमर है,
एक बार जब हो जाए,
सदा के लिए रह जाए,
ये सलामती है,
तुम्हारी खुशामदी है,
इसमें कुछ लेने की आस नहीं होती,
ये खोजने में नहीं,
देने में है,
कि कितना लुटा जाऊं,
कैसी भी कोई प्यास नहीं होती,
ये खुशी है,
एहसास है,
दुआ है,
प्रेम?
मेरे लिए तो प्रेम तुम हो!!
No comments:
Post a Comment